रामधारी सिंह दिनकर जी की रचनाएँ एक हाथ में कमल, एक में धर्मदीप्त विज्ञान, ले कर उठनेवा…
मैं क्यों खुद को बदलूँ - बदलाव पर कविता मैं, मैं हूँ और सदा मैं ही रहूँ ! मैं क्यों …
कितने सौभाग्यशाली है हम जो हमें इतना भौगोलिक दृष्टि से संपन्न देश मिला है। पहाड़, नदि…
हर समंदर यहाँ सैलाब लिए खड़ा है हर समंदर यहाँ सैलाब लिए खड़ा है मौन-सी लहरों में कुछ रहस…
बदलाव करो निरंतर करो - कविता बदलाव करो, निरंतर करो पर उसमें कुछ बेहतर करो बदलाव हो ज…
आज इस हूक को सहना होगा हाँ तुझे जीना होगा - कविता इन लम्हों को बीतने दे जो प्रलय उठा…
कभी न करना अन्न दाता का अपमान अन्न के कण-कण में होते है भगवान कभी न करना अन्न दाता क…